रतलाम 04 जनवरी 2018/ जिले में कलेक्टर श्रीमती रूचिका चौहान के निर्देश पर मीजल्स और रूबेला टीकाकरण के संबंध में स्वास्थ्य विभाग द्वारा तैयारियां की जा रही है। इस क्रम में आज जिले के पिपलोदा एवं सैलाना में पहुंचकर तैयारियों की समीक्षा की गई। एमआर केम्पेन में 9 माह से 15 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों का कवरेज करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस अभियान का लक्ष्य100 फीसदी लक्षित बच्चों को एमआर टीका से प्रतिरक्षित कर तेजी से जनसंख्या प्रतिरक्षा का निर्माण करना तथा अतिसंवेदनशील समूह वाले बच्चों से बीमारी को दूर करना है, ताकि मिजेल्स और जन्मजात रूबेला सिंड्रोम के कारण होने वाली मृत्यु को कम किया जा सके। शहर के निजी और शासकीय विद्यालयों के शेष शिक्षको का प्रशिक्षण 07 जनवरी को लायन्स क्लब हाल में 10ः30 बजे से आयोजित किया जाएगा। टीकाकरण के लिए प्रथम स प्ताह में स्कूल,दूसरे सप्ताह में आंगनवाडी केन्द्र, तीसरे सप्ताह आउटरीच स्थल, तथा चौथे सप्ताह छूटे हुए बच्चों का प्रतिरक्षण किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि भारत में अब तक लगभग 15 करोड बच्चों का टीकाकरण किया जा चुका है। मिजेल्स और रूबेला का टीका पूरी तरह से सुरक्षित है। अन्य दूसरी दवाओं और टीकों की तरह ही कुछ हल्के क्षणिक प्रतिकूल प्रभाव जैसे कि लालीपन, बुखार और शरीर में चकत्ता का होना जैसे लक्षण टीकाकरण के बाद देखने में आ सकता है, लेकिन यह सामान्य बात है। यह खुद ही ठीक हो जाते हैं या इनका उपचार बहुत ही आसानी से किया जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों द्वारा स्कूलों में पहुंचकर टीकाकरण की पुर्व सूचना दी जा रही है। शिक्षको द्वारा अभियान के लिए शिक्षक अभिभावक बैठके आयोजित की जाएगी। स्कूल में बच्चों की संख्या के आधार पर दलों की डयूटी लगाई जाएगी। एक दिन में पूरा स्कूल कवरेज किया जाएगा। एक एएनएम एक दिन में अधिकतम 200 बच्चों का टीकाकरण करेगी। एक टीम में एएनएम, आशा, आंगनवाडी कार्यकर्ता सदस्य रहेंगे। एमआर के टीके का डोज अतिरिक्त डोज के रूप में लगाया जाएगा,यदि किसी बच्चे को पहले खसरे का टीका लग चुका हो तब भी यह टीका लगवाना आवश्यक रहेगा।
खसरा क्या है ?
खसरा, जिसे रूबियोला के रूप में भी जाना जाता है, मुख्य रूप से नाक, साँस की नली और फेफड़ों का एक संक्रमण है, जो बहुत संक्रामक है, अर्थात् यह व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से फैलता है।
खसरा वायरस आमतौर पर तब फैलता है जब किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा बूंदों जिसमें वायरस होता है के साथ कोई संपर्क में आता है। यह तब हो सकता है जब वायरस के साथ कोई खाँसता या छींकता है। यह तब भी हो सकता है जब लोग इस्तेमाल किये टिशू को छूते हैं, पीने के गिलास आपस में बाँटते हैं या हाथों को छूते हैं जिन पर संक्रमित बूंदें हैं। एक बार जब वायरस शरीर में चला जाता है,संक्रमण पूर्णतया नाक, साँस की नली और फेफड़ों, त्वचा और शरीर के अन्य अंगों में फैलता है।
खसरे के साथ एक व्यक्ति लक्षण शुरू होने के एक से दो दिन पहले (या ददोरे से तीन से पाँच दिन पहले) से लेकर ददोरा प्रकट होने के चार दिन बाद तक दूसरों तक खसरा फैला सकता है। खसरा आम तौर पर औसत दर्जे की बीमारी का कारण बनता है। छोटे बच्चों में, जटिलताओं में मध्य कान का संक्रमण (ओटिटिस मीडिया),निमोनिया, क्रूप और दस्त शामिल हैं।
रूबेला क्या है..?
रूबेला एक संक्रमण से होने वाली बीमारी है जो जीनस रुबिवायरस के वायरस द्वारा होता है। रुबेला संक्रामक है लेकिन प्रायः हल्का वायरल संक्रमण होता है। हालांकि रुबेला को कभी-कभी“जर्मन खसरा” भी कहते हैं, रुबेला वायरस का खसरा वायरस से कोई संबंधित नहीं है।
दुनिया भर में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों में वर्ष 2012 में लगभग 100,000 रुबेला मामले सामने आए, हालांकि संभावित रूप से वास्तविक मामले इससे कहीं अधिक हैं।
इसके लक्षण…’-
रुबेला के लक्षणों में शामिल हैं कम बुखार,मिचली और प्रमुख रूप से गुलाबी या लाल चकत्तों के निशान जो लगभग 50-80þ मामलों में उत्पन्न होते हैं। चकत्ते प्रायः चेहरे पर निकलते हैं, नीचे की ओर फैलते हैं और 1-3 दिनों तक रहते हैं। वायरस के संपर्क में आने के 2-3 दिनों के बाद चकत्ते निकलते हैं। सर्वाधिक संक्रामक अवधि होती है चकत्ते निकलने के 1-5 दिनों तक। रुबेला विशिष्ट रूप से विकसित हो रहे भ्रूण के लिए खतरनाक होता है। अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया खंड जटिलताएं देखें।-
’कैसे फैलता है यह बीमारी…’-
वायरस वायुजनित श्वसन के छींटों द्वारा फैलता है। संक्रमित व्यक्ति रुबेला के चकत्तों के निकलने के एक हफ्ते पहले भी, और इसके पहली बार चकत्ते निकलने के एक हफ्ते बाद तक संक्रामक हो सकते हैं। (यह बहुत ही संक्रामक होता है जब चकत्ता पहली बार निकलता है।) ब्त्ै के साथ जन्मे बच्चे एक वर्ष से अधिक समय तक दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं।रुबेला के मामले जाड़े के अंत में या बसंत के शुरुआत में अपने चरम पर होते हैं।-
’इसके उपचार एवं देखभाल…’
रुबेला का कोई प्रत्यक्ष इलाज नहीं है। बुखार कम करने के प्रयास के साथ-साथ सहयोगात्मक देखभाल प्रदान किया जा सकता है।-
’जटिलताए’-
रुबेला प्रायः बच्चों में एक गंभीर रुग्णता नहीं है,और इसके लक्षण आमतौर पर हल्के होते हैं। रुबेला की जटिलताएं बच्चों की तुलना में वयस्कों में अधिक होती हैं, और इसमें अर्थराइटिस, एंसेफेलाइटिस, और न्युराइटिस शामिल हैं।
रोग का प्रमुख खतरा है कन्जेनिटल रुबेला सिंड्रोम (ब्त्ै). किसी महिला को गर्भावस्था के दौरान रुबेला संक्रमण होने पर, यह संक्रमण विकसित हो रहे भ्रूण तक पहुंच सकता है। ऐसी गर्भावस्थाओं को सहज गर्भपात या अपरिपक्व जन्म का जोखिम होता है। यदिभ्रूण बच जाता है, तो बच्चे को भारी रूप से जन्म संबंधी विकृतियां हो सकती है, जिसमें बहरापन, आंखों की खराबी, हृदय संबंधी समस्याएं, मानसिक मंदन, हड्डी में जख्म और अन्य असामान्यताएं हो सकती हैं। इन विकृतियों को समग्र रूप से ब्त्ै कहते हैं। जो माताएं गर्भावस्था के पहले तीन महीने के दौरान संक्रमित होती हैं, अध्ययन के मुताबिक, उनके 50 प्रतिशत से लेकर 90प्रतिशत बच्चे सीआरएस से पीड़ित होंगे। दुनिया भर में, हर साल लगभग 100,000 बच्चे सीआरएस के साथ जन्म लेते हैं।-
5 मीजल्स रूबेला के शिकार से बचने के लिए उपलब्ध टीके…’
राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा चलाया गया मिजेल्स-रूबेला टीकाकरण अभियान एक वृहद अभियान है, जिसके अंतर्गत9 महीने से लेकर 15 साल तक की आयु समूह के बच्चों को पूरे देश में मिजूल्स रूबेला का टीका लगाना है।