क्या है चिट फंड और इसमें कैसे फंसता है आम आदमी?

0

पश्चिम बंगाल में चर्चित चिटफंड घोटाला मामले में सीबीआई की एक बड़ी टीम रविवार को कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुंची। उनके घर पर पुलिसकर्मियों ने सीबीआई के अधिकारियों से वारंट या अथॉरिटी लेटर मांगा। नहीं दिखा पाने पर धक्का-मुक्की की स्थिति बन आई।  इसके बाद स्थानीय पुलिस पहुंची और अधिकारियों को पुलिस स्टेशन ले गए। घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद सीएम ममता बनर्जी भी कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुंच गईं। 

पश्चिम बंगाल का चर्चित चिटफंड घोटाला 2013 में सामने आया था। कथित तौर पर तीन हजार करोड के इस घोटाले का खुलासा अप्रैल 2013 में हुआ था। आरोप है कि शारदा ग्रुप की कंपनियों ने गलत तरीके से निवेशकों के पैसे जुटाए और उन्हें वापस नहीं किया। इस घोटाले को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार पर सवाल उठे थे। चिट फंड एक्ट-1982 के मुताबिक चिट फंड स्कीम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का समूह एक साथ समझौता करे। इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाए और तय वक्त पर उसकी नीलामी की जाए।

जो फायदा हो बाकी लोगों में बांट दिया जाए। इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसे लौटाने भी होते हैं। नियम के मुताबिक ये स्कीम किसी संस्था या फिर व्यक्ति के जरिए आपसी संबंधियों या फिर दोस्तों के बीच चलाया जा सकता है लेकिन अब चिट फंड के स्थान पर सामूहिक सार्वजनिक जमा या सामूहिक निवेश योजनाएं चलाई जा रही हैं। इनका ढांचा इस तरह का होता है कि चिट फंड को सार्वजनिक जमा योजनाओं की तरह चलाया जाता है और कानून का इस्तेमाल घोटाला करने के लिए किया जाता है।

ये बरतें सावधानियां

निवेश से पहले किसी भी चिटफंड कंपनी के बारे में पूरी पता करें। सरकार ने चिटफंड के बारे में कुछ गाइडलाइन दे रखी उस पर जरूर नजर रखें। सेबी ने चेतावनी जारी कर कहा था कि वह न किसी स्कीम या शेयर में निवेश की सलाह देता है और न ही किसी स्कीम लेने की सिफारिश करता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और बीमा नियमन एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) भी निवेशकों के लिए चेतावनी जारी करती रही है।

मोटे मुनाफे का लालच
चिट फंड कंपनियां इस काम को मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) में तब्दील कर देती हैं। मल्टी लेवल मार्केटिंग में कंपनियां मोटे मुनाफे का लालच देकर लोगों से उनकी जमा पूंजी जमा करवाती हैं। साथ ही और लोगों को भी लाने के लिए कहती हैं।

बाजार में फैले उनके एजेंट साल, महीने या फिर दिनों में जमा पैसे पर दोगुने या तिगुने मुनाफे का लालच देते हैं। ललचाऊ और लुभावनी योजनाओं (पॉन्जी स्कीम) के जरिए कम समय में बहुत अधिक मुनाफा देने का दावा किया जाता है। इनमें प्लांटेशन, बकरी पालन के नाम पर तो कभी जमा पूंजी पर बैंक से अधिक ब्याज का लालच देकर पैसा जमा करवाया जाता है। तमिलनाडु में 500 करोड़ का एमू घोटाला पॉन्जी स्कीम की बानगी है।

कैसे फंसता है आम आदमी

कंपनियां ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में ज्यादा सक्रिय रहती हैं। दूरदराज के इलाकों में फैले हजारों एजेंटों के नेटवर्क के जरिए धन उगाहती हैं। कंपनी के विज्ञापन और दस्तावेजों में बड़े-बड़े नेताओं, फिल्मी और अन्य बड़ी हस्तियों के साथ संबंधों को देख कर निवेशक कंपनी और एजेंटों पर आंख मूंद कर भरोसा कर बैठता है। कंपनियां निवेश की रकम का 25 से 40 फीसदी तक एजेंट को कमीशन के तौर पर देती हैं।

अमीर बनने की चाहत में लुटती कमाई
कम समय में अमीर बनने की चाहत में मध्यम और निचले तबके के लोगों के लोग अपनी गाढ़ी कमाई को चिट फंड कंपनियों और एजेंटों के हवाले कर देते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी की चेतावनियों के बावजूद लाखों निवेशक इन कंपनियों की जालसाजी का शिकार हो रहे हैं। हजारों करोड़ रुपये उगाहने के बाद जब पैसों की वापसी का समय आता है, तो यह कंपनियां रफूचक्कर हो जाती हैं और लोग हाथ मलते रह जाते हैं।

 

चिट फंड की निगरानी
भारत में चिट फंड का नियमन चिट फंड कानून 1982 के द्वारा होता है। इस कानून के तहत चिट फंड कारोबार का पंजीयन व नियमन संबद्ध राज्य सरकारें ही कर सकती हैं। चिट फंड एक्ट 1982 के सेक्शन 61 के तहत चिट रजिस्ट्रार की नियुक्ति सरकार के द्वारा की जाती है। चिट फंड के मामलों में कार्रवाई और न्याय निर्धारण का अधिकार रजिस्ट्रार और राज्य सरकार का ही होता है।

धोखाधड़ी की जांच
सामान्यतया वित्तीय धांधलियों से जुड़े मामलों को जांच एसएफआईओ करती है। लेकिन फर्जीवाड़े पर अंकुश लगाने के लिए बना यह विभाग पर्याप्त संसाधनों और कानूनी शक्तियों से वंचित है। एसएफआईओ के पास इस समय सत्यम कंप्यूटर्स, रिबॉक और पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से संबधित पूर्ति समूह समेत 30 से ज्यादा मामलों की जांच का जिम्मा है।

वित्त पर संसद की स्थायी समिति ने हालिया रिपोर्ट में एसफआईओ में स्टाफ की कमी पर चिंता जाहिर की है। रिपोर्ट के अनुसार, एसएफआईओ में 90 फीसदी कानूनी और 40 फीसदी ऑपरेशनल स्टाफ की कमी है।

एजेंसियों की भरमार, घपले हजार
आर्थिक अपराधों पर रोकथाम के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन कई विभाग और एजेंसियों के बावजूद ठगी का धंधा खूब फैल रहा है। पश्चिमी बंगाल के शारदा समूह का मामला इसी सिलसिले की एक नई कड़ी है। इससे पहले स्पीक एशिया और स्टॉक गुरू जैसे कई मामलों में निवेशकों को चूना लग चुका है। अब वित्त मंत्रालय इन तमाम एजेंसियों के बीच समन्वय पर जोर दे रहा है।