News By – नीरज बरमेचा एवं विवेक चौधरी
www.newsindia365.com सोमवार होलिका दहन की तपन मध्यप्रदेश की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार पर भी महसूस होने लगी थी। कुछ दिन पहले आये “विधायक समर्थन वाला संकट” टलता नज़र आ ही रहा था कि सोमवार की रात प्रदेश की सियासत से जुड़े नेताओं, पत्रकारों और व्यक्तियों के लिए “अघोषित राति-जगा” हो गई। मंगलवार को होली की सुबह जब लोगों के लिए रंग खेलने की शुरआत हो रही थी तब कांग्रेस के नेताओं चेहरे से रंग उड़ रहे थे। भाजपा के नेता होली की शाम “दीवाली” मनाने के चक्कर मे नज़र आ रहे थे। अगर इस पर नज़र डालें तो पाएंगे कि प्रदेश में हुए विधान सभा मे भाजपा को कुल मत तो अधिक मिले थे लेकिन सीटों की संख्या में पिछड़ गए थे। कांग्रेस ने मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया का युवा चेहरा आगे रखकर लड़ा और अत्यंत कम अंतर से जीता। लेकिन उसके बाद से ही उनकी उपेक्षा का दौर शुरू हो गया। कांग्रेस संगठन ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया और पर्दे के पीछे से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का प्रभाव बढ़ता चला गया। धारा 370 पर, CAA पर सिंधिया के समर्थन, अपने ट्वीटर हैंडल पर कांग्रेस पार्टी के नाम हटाने सहित अनेक संकेत सिंधिया अपने आलाकमान को देते रहे लेकिन रोम के जलने पर नीरो बांसुरी बजाते रहे। उसके बाद नतीजा सबके सामने आ गया और होली न खेलने वालों के लिए दिनभर टीवी के सामने का समय गुजारने के प्रबंध हो गया। प्रदेश सरकार पर सियासी संकट छा गया। सड़क पर उतरने की राय देने वाले की सरकार पटरी से उतरते नज़र आने लगी।
क्या अब प्रशासनिक संकट आएगा?
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से और भाजपा में प्रवेश करने की संभावना से प्रदेश में सियासी संकट सामने आ गया। विधायको, मंत्रियों, संगठन के नेताओं के त्याग पत्रों की सूची लंबी होती गई। लेकिन क्या प्रदेश में जल्द ही सत्ता परिवर्तन के साथ “प्रशासनिक संकट” भी आने वाला है? यह एक बड़ा सवाल है। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की आहट आ रही है। सियासी समीकरण बदलने के संकेत स्पष्ट हो रहे हैं। सूत्रों की माने तो हालात यह है कि प्रदेश प्रशासन के बड़े धुरंधर से लेकर जिले के मुखिया और कप्तान भी संशय की स्थिति में है। 2018 में सत्ता परिवर्तन के साथ भारी प्रशासनिक फेरबदल भी हुआ। जिसके साथ साथ तबादला उद्योग चर्चा में भी रहा। माफिया पर कार्यवाही के नाम पर प्रशासनिक अधिकारी सरकार की गुड बुक में अपना नाम लिखवाने की जुगाड़ में नज़र आये। CAA समर्थन और विरोध प्रदर्शन के समय प्रशासन का रवैया भी किसी से छुपा नहीं रहा। राजगढ़ कलेक्टर के द्वारा लगाए गए थप्पड़ की गूंज, वीर सावरकर वाली कॉपियों के मुफ्त वितरण, DGP की नियुक्त वाले प्रकरण जैसी अनेक घटनाएं चर्चा में रही। वर्तमान हालात में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव की रतलाम प्रवास के समय दी गई धमकी का प्रशासनिक अधिकारियों को स्मरण आना स्वाभाविक है। कमलनाथ ने सत्तासीन होने पर प्रशासनिक सर्जरी का प्रयास किया था। वहीं अगर पुनः सत्ता परिवर्तन हो गया तो यह भी महत्वपूर्ण है कि शिवराज सिंह चौहान को 13 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहने का अनुभव है। और प्रशासन में उनकी पकड़ और अनुभव, उन अधिकारियों जो मुश्किल में ला सकती है जो पिछले सत्ता परिवर्तन से अपना हृदय और रवैया परिवर्तन कर बैठे थे। अनुभवी लोगो की राय यह है कि सत्ता बदलती रहती है, पार्टियां आती जाती रहती है लेकिन नौकरी बरकरार रहती है। इसलिए कहते है अधिकारियों को बिना किसी पूर्वाग्रह और पक्षपात के अपनी नौकरी करनी चाहिए। जनता का सेवक बनना चाहिए ना कि सत्तासीनों के सेवक। बहरहाल प्रदेश में अभी होने को बहुत कुछ है। जिसकी अभी प्रतीक्षा ही कि जा सकती है।