News By – नीरज बरमेचा & विवेक चौधरी
कोरोना वायरस संदर्भ में बचाव ही उपचार है, वाली उक्ति सटीक बैठती है। जब प्रामाणिक उपचार का अभाव हो, तो उस दशा में बचाव के कदम ही प्राथमिक उपचार होते हैं। वैसे रतलाम के सुरक्षा चक्रव्यूह को बेधकर इंदौर से शव को रतलाम लाने और दफनाने से उपजे हाहाकार की गूंज अभी तक शांत यो नहीं हुई हैं। जहाँ इंदौर प्रशासन ने मृतक को कोरोना संदिग्ध मानकर सैंपल तो लिया मगर शव, परिजनों को ले जाने दिया। वहीँ किसी भी कोरोना संदिग्ध के शव के अंतिम संस्कार के लिए रतलाम प्रशासन शुरुआत से ही अपनी सुरक्षा नीति पर कायम रहा है। और सुरक्षा बचाव की दृष्टि से यह सही कदम ही माना जायेगा। रतलाम में किसी भी संदिग्ध का शव उसकी रिपोर्ट आने तक किसी को नहीं सौंपा जाता है। यह सुरक्षागत प्रक्रिया आज फिर दोहराई गई है।
मामला कुछ इस तरह है कि जिला प्रशासन ने जनसम्पर्क विभाग के माध्यम से यह ज्ञात हुआ है कि जिले के ग्राम रियावन के 42 वर्षीय पुरुष, जिसका सांस में तकलीफ होने की शिकायत पर, उसे दो दिन जावरा शासकीय चिकित्सालय में रखकर उपचार किया गया था। संभवतः समस्या बढ़ने पर उसे 20 अप्रैल की शाम को जिला चिकित्सालय रतलाम रेफर किया गया था। मरीज का रतलाम में कोविड 19 सैंपल लेकर गवर्मेंट मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) रतलाम भेजा गया था। उस मरीज की आज मंगलवार की सुबह तकलीफ बढ़ने से मृत्यु हो गई है। प्रारंभिक मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार मरीज को 1 वर्ष से अधिक से अस्थमा एवं सांस की तकलीफ थी। चूंकि मरीज का कोविड-19 का सैंपल लिया गया है तो उसे संभावित मरीज ही माना गया हैं। अतः उसके परिजनों को आइसोलेट किया गया है तथा मृतक का अंतिम संस्कार भी कोविड 19 प्रोटोकॉल के अनुसार ही किया जाएगा। काश यह प्रक्रिया अगर इंदौर में भी अपनाई गई होती तो कोरोना पॉजिटिव मृतक का शव ना तो रतलाम आता और ना ही उनके परिजन जो अब कोरोना पॉजिटिव है, रतलाम आ पाते….