सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को मंगलवार को तीन के मुकाबले 323 मतों से लोकसभा की मंजूरी मिल गयी. अब बुधवार को इसे राज्यसभा में पेश किया जायेगा. लोकसभा में विपक्ष सहित लगभग सभी दलों ने 124वां संविधान संशोधन विधेयक, 2019 का समर्थन किया.
साथ ही सरकार ने दावा किया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा, क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है. इस विधेयक के तहत सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षा व सरकारी नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित करने का प्रावधान है. केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को ही इसे मंजूरी प्रदान की थी. विधेयक पर हुई चर्चा में कांग्रेस, सपा सहित विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक का समर्थन करने के बावजूद इसे जल्दबाजी में किया गया फैसला बताया. आरोप था कि सरकार इस विधेयक को लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लायी है. इस पर सरकार ने कहा- आप इस बिल का समर्थन कर ही रहे हैं, तो आधे मन से नहीं, पूरे दिल से कीजिए.
लोकसभा में केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने विधेयक पर सदन में पांच घंटे तक हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि यह फैसला ‘सबका साथ, सबका विकास’ की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है. यह विधेयक अमीरी व गरीबी की खाई को कम करेगा. लाखों परिवारों को लाभ होगा. इससे सामान्य वर्ग सभी कमजोर लोगों को लाभ होगा, चाहे वह किसी वर्ग या धर्म के हों. इस विधेयक पर लोकसभा में शाम पांच बजे से रात दस बजे तक लगातार चर्चा हुई. अन्नाद्रमुक के एम थंबिदुरै, आइयूएमएल के इटी मोहम्मद बशीर और एआइएमआइएम के असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक का विरोध किया था.
गहलोत ने विपक्ष की उस आशंकाओं को निराधार बताया कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा है, तो यह कैसे संभव होगा? उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की नीति और नीयत साफ है. इसलिए संविधान में प्रावधान करने के बाद आरक्षण देने का काम सरकार करेगी. ऐसे में यह प्रावधान कोर्ट में निरस्त होने की बात में दम नहीं है. तत्कालीन राव सरकार ने संवैधानिक प्रावधान के बिना 10 प्रतिशत आरक्षण का आदेश जारी किया था, इसलिए टिक नहीं सका. इस दौरान सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद थे.
विधेयक पर लोकसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद केवी थॉमस ने कहा कि विधेयक का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन हमारी मांग है कि इसे पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए. थॉमस ने कहा कि लगता है कि सरकार जल्दबाजी में है और जल्दबाजी में इतना बड़ा फैसला नहीं लिया जाना चाहिए. इसमें कहा गया है कि सरकारी सहायता प्राप्त और गैर-सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण दिया जायेगा, जबकि एससी-एसटी के लिए गैर-सरकारी संस्थानों में ऐसा नहीं है. नौकरियों की बात आती है, तो सरकार बताये कि रोजगार है कहां?
सभी को विकास के लिए समान अवसर
एचआरडी मंत्रालय कर रहा काम: उच्च शिक्षण संस्थाओं में 10 लाख सीटें बढ़ानी होंगी
मानव संसाधन विकास मंत्रालय उच्च शैक्षिक संस्थानों में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की रूपरेखा पर काम कर रहा है. यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त सभी विवि व शैक्षिक संस्थान चाहे वह सरकारी हो या निजी उन्हें आरक्षण लागू करना होगा. प्रारंभिक आकलन के अनुसार केंद्रीय विवि, आइआइटी व आइआइएम जैसे अन्य प्रतिष्ठित उच्च शैक्षिक संस्थानों समेत देश भर में संस्थानों में करीब 10 लाख सीटें बढ़ानी होगी|