News By-विवेक चौधरी (ब्यूरो प्रमुख रतलाम)
(www.newsindia365.com) शीर्षक पढ़कर चोंकिये नही। प्रदेश सरकार के मंत्रियों के देशी विदेशी शराब पीने पिलाने या बीड़ी तम्बाकू के खर्चे की व्यवस्था वाले बयान के बाद शीर्षक पढ़कर उधर ध्यान जाना स्वाभाविक है।लेकिन यहाँ मामला कुछ और है। प्रदेश में नवगठित कांग्रेस सरकार अभी अपने हनीमून पीरियड पर चल रही है। इस दौरान थोकबंद तबादले हो रहे हैं। लगभग हर शासकीय विभागों में तबादले की बाढ़ आई हुई है। लेकिन प्रदेश सरकार को यही समझ में नहीं आ रहा है कि किसी एक व्यक्ति का या एक पद पर तबादला कितनी बार किया जाए? अभी सरकार का एक क्वार्टर अर्थात एक तिमाही पूरा नहीं हुआ है और उसके पहले ही तबादलों को लेकर सरकार हैंगओवर की स्थिति में नजर आ रही है। यह हैंगओवर सरकार के लिए हेडेक अर्थात सिरदर्द बनते जा रही है। मुख्यमंत्री तबादलों को सही बता रहे है लेकिन वस्तुस्थिति कुछ और ही है। तबादले के बाद अधिकारी के बोरिया बिस्तर खुलते ही उनके अन्य जगह के आदेश जारी हो जाते है। ऐसे में में शासकीय कार्य प्रभावित हो रहे है। कर्मचारियों को पता नही चल रहा है कैसे कार्य करें।
ऐसा ही कुछ वाकिया रतलाम के नगर निगम के आयुक्त पद को लेकर हो रहा है। पूर्व में 14 फरवरी को थोकबंद से तबादलों के बीच में रतलाम आयुक्त एस के सिंह का भी तबादला प्रकरण शुरू हुआ। भारतीय प्रशासनिक सेवा के सतीश कुमार एस का रतलाम नगर निगम के आयुक्त पद पर तबादला किया गया। सतीश कुमार ने रतलाम आकर नगर निगम में आयुक्त पद का एकतरफा चार्ज ले लिया। जिसके बाद वर्तमान आयुक्त एसके सिंह ने उच्च न्यायालय की शरण ली एवं आदेश पर स्टे हासिल कर लिया। क्योंकि प्रदेश सरकार ने सतीश कुमार एस का रतलाम तबादला तो किया था लेकिन वर्तमान आयुक्त एसके सिंह का किसी दूसरी जगह पर स्थानांतरण नहीं किया गया था। ऐसे में जिला प्रशासन भी पशोपेश में पड़ गया था। एवं विभागीय सलाह लेने की व्यवस्था बनाने में लगी थी। इस अप्रिय स्थिति के बाद सरकार की किरकिरी होने लगी। जिससे बचने के लिए सरकार ने सतीश कुमार एस को भोपाल जिला पंचायत का मुख्य कार्यपालन अधिकारी नियुक्त करते हुए पुनः तबादला कर दिया। शुक्रवार को फिर से तबादला आदेश जारी हुआ जिसमें वर्तमान आयुक्त एसके सिंह का भी तबादला कर दिया गया। आयुक्त एस के सिंह का प्रभारी संयुक्त संचालक, नगरीय प्रशासन एवं विकास, नर्मदापुरम संभाग के पद पर तबादला कर दिया गया। लेकिन कल ही उनका तबादला निरस्त हो गया है। इन सबको लेकर निगम के गलियारे और चौराहे चौपालों पर चटखारे लेकर चर्चाएँ होती रही।
प्रदेश में कांग्रेस की नेतृत्व वाली नई सरकार के साथ समस्या यह है कि वह तबादला तो कर रही हैं लेकिन बिना किसी होमवर्क या योजना के। शासन द्वारा तबादले हो जाते हैं उसके पश्चात निरस्ती या संशोधित सूची जारी हो जाती है। या कुछ दिनों के अंदर ही व्यक्ति का पुनः तबादला हो जाता है। दबे शब्दो मे आरोप लग रहे हैं कि अपने प्रभाव एवं सम्पर्क के माध्यम से तबादले या तो निरस्त हो रहे हैं या मनचाही जगह पर हो रहे हैं। यह तबादला मंत्रालय की मोटी कमाई का मामला है या आचार संहिता लगने के पूर्व अपने व्यक्तियों को मनपसंद जगह पर नियुक्त करने की गणित, यह भगवान ही जनता है। आरोप यह भी है कि बहुमत की संख्या की धार पर खड़ी सरकार को नेता दबाव में लेकर अपनी मनमानी करते है। जिसकी वजह से तबादलों का खेल चल रहा है। हालात यह कि अब तो लगने लगा है कि प्रदेश सरकार एक तबादला मंत्रालय का ही गठन कर दे तो ठीक रहेगा। क्योंकि रोज ही तबादले हो रहे है।