News By – विवेक चौधरी (रतलाम ब्यूरों प्रमुख)
पूर्ववर्ती प्रदेश सरकार और मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम की उपलब्धियों में शामिल आज बदहाली का शिकार हो गया है। जो सड़क रखरखाव के अभाव में बिना बारिश के भी मरम्मत की गुहार करती नजर आती है, उसके बारिश में क्या हाल होंगे इसका अंदाजा लगाना आसान है। लेकिन लगता है कि इस बार अच्छी बारिश की आड़ में टोल कंपनी ने रखरखाव ना करने का निश्चय कर लिया है। रतलाम से लेबड़ जाते से समय लगता ही नही है कि आप फोरलेन पर चल रहे है। यही हाल मंदसौर तरफ यात्रा करते समय लगता है। दोनों ही तरफ की सड़के गढ्ढो से पटी है। दुर्भाग्य यह है कि उसपर टोल वसूला भी जा रहा है। दुर्भाग्य का भी दुर्भाग्य यह है कि संबंधित जिलों का प्रशासन अपनी नाकामी छुपाने के लिए आंख मूँदे सोए होने की नोटंकी कर रहा है।
धार, रतलाम, मंदसौर और नीमच से गुजरने वाले इस फोरलेन के उपभोक्ताओं से टोल वसूली उनके साथ नाइंसाफी है। अपने समय, ईंधन, वाहन रखरखाव बचाने तथा आरामदायक यात्रा के लिए इस हाइवे से गुजरने वाले वाहन टोल शुल्क चूकाते है। लेकिन इन उपभोक्ताओं के हित की अनदेखी करना टोल कंपनी और प्रशासन का शर्मनाक कृत्य है। ऊंची नीची गुणवत्ताहीन सड़कों पर जगह जगह निकल आये गड्ढे ‘नीम चढ़े करेले’ की भांति है। दुर्घटनाओं को आमंत्रण देते गड्ढों पर प्रशासन की अनदेखी से तो यही अंदेशा लगता है कि प्रशासन के आला अधिकारी या तो टोल कंपनी के हितचिंतक है अथवा उनके सामने बेबस और लाचार है। देखना यह है कि अपने आप को जनता के दिलों में स्थापित करने में जुटी हुई सरकार इस जनहित के मुद्दे पर ध्यान देती है या नहीं, अथवा उसे भी तबादला उद्योग से फुरसत ही नहीं है। इस समस्या पर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों पर भी जनता की निगाहें लगी हुई है कि उनका रवैया क्या रहता है। लेकिन सौ बात की एक बात यह है कि जब प्रशासन ही नाकाम और नकारा हो जाये तो जनता के भाग्य में परेशानियां ही लिखी जाने लगती है।