सरकार की देश की बसे बड़ी तेल रिफाइनिंग कंपनी इंडियन ऑयल में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 51 फीसदी से कम करने की योजना है। हालांकि सरकार और उसके स्वामित्व वाली कंपनियां इंडियन ऑयल पर अपना नियंत्रण बनाए रखेंगी।ब्लूमबर्ग के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट अगले सप्ताह कुछ कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने पर विचार करेगी। इसमें ऑयल इंडिया की हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम करना भी शामिल है। सरकार की इंडियन ऑयल में 51.5 फीसदी हिस्सेदारी है और बाकी 25.9 फीसदी हिस्सेदारी एलआईसी, ओएनजीसी और ऑयल इंडिया के पास है। राजस्व संग्रह में कमी के चलते मोदी सरकार के पास अब सीमित विकल्प बचे हैं। इसीलिए वह विनिवेश से 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना पर काम कर रही है।
अगर सरकार विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रहती है तो जीडीपी की तुलना में राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी से ऊपर जाने का खतरा खासा बढ़ जाएगा। वहीं रेटिंग एजेंसियां भारत के क्रेडिट स्कोर को भी डाउनग्रेड कर सकती हैं।
देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम कंपनी जल्द ही निजी हाथों में चली जाएगी। केंद्र सरकार भारत पेट्रोलियम कॉर्रपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) में अपनी 53 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी को बेचने जा रही है। इसके लिए सरकार की तरफ से सारी तैयारियों को पूरा कर लिया गया है।

अधिकारी ने कहा कि कैबिनेट ने पूर्व में पीएसयू कंपनियों में कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी रखने का फैसला किया था और अब कैबिनेट को ही हिस्सेदारी इस स्तर से नीचे ले जाने पर फैसला करना होगा। उन्होंने कहा, ‘सरकार चुनिंदा सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उपक्रमों (सीपीएसई) में हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम करने का प्रस्ताव/योजना तैयार कर रही है।’ अधिकारी ने कहा कि यह संभव है, लेकिन इसके लिए कंपनी कानून की धारा 241 में संशोधन की जरूरत होगी।
सरकार ने गुपचुप तरीके से उस कानून को खत्म कर दिया है, जिस कानून से कंपनी का राष्ट्रीयकरण हुआ है। ऐसे में कंपनी निजी हाथों में बेचने के लिए संसद से मंजूरी नहीं लेनी पड़ेगी। दरअसल मोदी सरकार ने Repealing and Amending Act को साल 2016 में ही खत्म कर दिया था। जिसमें 187 अप्रचलित और निरर्थक कानून रद्दी की टोकरी में चले गए। नंबर के पहले हफ्ते में सरकार निविदा निकालेगी, जिसके बाद प्रॉसेस शुरु हो जाएगा।
