क्या इस अस्पताल को भी किसी मानसिक रोगी से मरीजों का उपचार कराने की प्रतीक्षा है? जानिए क्या है मामला…

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Team News India 365 की खबर...

  • बिना एप्रोन (White Coat) के कैसे पहचाने चिकित्सक को?
  • बिना नाम पट्टिका (Name Plate) कैसे जाने चिकित्सक को?
  • आखिर कब से शुरू होंगी चिकित्सको की बॉयोमेट्रिक अटेंडेंस?

वैसे तो मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों के हाल बेहाल है। विगत दिनों प्रदेश के छतरपुर के जिला अस्पताल में उस समय हड़कंप मच गया था जब अस्पताल में एक मानसिक रोगी ने डॉक्टर की कुर्सी पर बैठकर धड़ाधड़ मरीजों का इलाज करना शुरू कर दिया। अंग्रेजी के पूर्व शिक्षक बताए जाने वाले इस मानसिक रोगी ने डॉक्टर के खाली पड़े चैम्बर को देखा और मरीजों की लंबी कतार देखकर मरीजों का उपचार लिखना शुरू कर दिया। उसने मरीजों से उनकी तकलीफ पूछी और जांच तथा दवा के पर्चे भी लिखें। बाद में अस्पताल प्रशासन को तो पता चलने पर हड़कम्प मच गया था और मरीजों को खोजकर पर्चे सुधारने की कयावद चलती रही। अब अगर डॉक्टर्स के चैम्बर खाली पड़े रहेंगे तो इस प्रकार की घटनाएं घट सकती ही है।

ऐसी ही कुछ घटना रतलाम जिला अस्पताल में कभी भी घट सकती है। क्योंकि यहाँ अनेक ऐसे अवसर आते है जब चिकित्सक अपने कक्ष में अनुपस्थित रहते है। बॉयोमेट्रिक अटेंडेंस की व्यवस्था ना होने से कोई देखने सुनने वाला नहीं है। साहब अपने मनमर्जी के समय पर आते है और चले जाते है। सरकारी चिकित्सकों की निजी प्रैक्टिस में अधिक रुचि कोई नई बात नहीं हैं। कई चिकित्सक तो डॉक्टर की पहचान वाले सफेद कोट (एप्रोन) पहने बिना ही उपचार करते दिखते है। यहाँ तक के उनके नाम पट्टिका भी नहीं होती है। कुछ शिकायतें तो ऐसी भी आई है कि इंटर्न पर्चा लिख देते है। चिकित्सकों की इन सभी हरकतों की वजह से गरीब और जरूरतमंद मरीजों को परेशान होना पड़ता है। और इन सभी घोर लापरवाही के चलते छतरपुर वाली घटना यदि रतलाम में घट जाए तो कोई अचंभा नहीं होना चाहिए है। डिप्टी कलेक्टर शिराली जैन द्वारा कई बार अस्पताल प्रशासन को वहाँ फैली दुर्व्यवस्था को सुधारने के लिए फटकार लगाई जा चुकी है। लेकिन “ढाक के वही तीन पात” जैसी स्थिति है। क्या रतलाम का जिला अस्पताल प्रशासन भी किसी मानसिक रोगी द्वारा मरीजों के उपचार किये जाने की प्रतीक्षा में है?