रतलाम शहर पर कोरोना का कहर है या जिम्मेदारों का जुल्म, जानिए क्या है हालात…

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News By – विवेक चौधरी & नीरज बरमेचा 

रतलाम की पहचान सिर्फ सेव, सोना, साड़ी और सट्टा ही नहीं है। यहाँ के प्राचीन इतिहास के साथ साथ “अच्छा खाना और मीठा बोलना” भी यहाँ की खास विशेषता है। यहाँ आकर यहीं के हो जाने वाले भी कई उदाहरण आसानी से मिल सकते है। लेकिन लगता है इस शहर को किसी की बुरी नज़र लग गई है।

जनसहयोग और प्रशासनिक व्यवस्थाओं के माध्यम से कोविड 19 के पहले दौर को रतलाम ने आसानी से पार कर लिया था, लेकिन कोविड के दूसरे दौर के कष्ट का अंत होता दिखाई ही नहीं दे रहा है। जिले के कुल संक्रमितों के आँकड़े को 6000 छूने के बाद 7000 तक पहुँचने में मात्र 7 दिन ही लगे। कोरोना संक्रमण प्रतिदिन आने वाले नए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या का लगातार शतक लगाए जा रहा है। कोरोना मृतकों की सरकारी संख्या ही चिंताजनक है, फिर बाजार की अनाधिकृत अथवा अफवाहों वाली संख्या का तो पूछिये ही मत। जिले की उपलब्धि के रूप में उभरे मेडिकल कॉलेज की साख, अब दांव पर लग चुकी है। लगता है कि वहाँ की अंदरूनी समस्याओं का हल अभी प्रशासनिक व्यवस्था के पास नहीं है। जिसका खामियाजा अंततः मरीजों और उनके परिजनों को भुगतना ही पड़ रहा है। मेडिकल कॉलेज प्रांगण में भर्ती मरीजों के परिजनों की संख्या देखकर लगता ही नहीं है शहर में लॉकडाउन है। परिजनों के चेहरे पर हताशा, निराशा और चिंता देखकर किसी का भी दिल बैठ सकता है। कई सारे दुखी और व्यथित है। उन्हें अपने परिजनों की ठीक से जानकारी नहीं मिल रही है तो किसी को अपने परिजन का शव लेने के लिए घंटो प्रतीक्षा करनी पड़ रही है।

ऐसे में जिले के प्रभारी मंत्री ने मेडिकल कॉलेज का दौरा किया, परिजनों से मिले, अधिकारियों के साथ बैठक की और उसके बाद पत्रकारों को आश्वस्त किया कि 2 दिन में व्यवस्था सुधरेगी। आशा पर दुनिया टिकी है लेकिन क्या सब आशानुरूप ही होगा? कोविड पॉजिटिव मरीजों के उपचार में काम मे आने वाले वाली दवाई रेमेडेसीवेर और गंभीर रोगियों के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की उपलब्धता पर मुख्यमंत्री प्रतिदिन स्थिति स्पष्ट कर रहे है। ऐसे में जिले के जिम्मेदारों से चमत्कार की क्या आशा करें? संक्रमण का यह आलम है कि शहर में रोगियों के लिए उपलब्ध बेड की संख्या की गिनती करनी पड़ रही है। नए कोविड केअर सेंटर्स बनाने की चर्चाएं आम है। सोशल मीडिया पर जिम्मेदारों की अव्यवस्था और मदद कैसे की जाए, इसकी ही चर्चा हो रही है। मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध स्टाफ एक बड़ा प्रश्न है।

आखिर कहा है जिला चिकित्सालय के डॉक्टर्स?

ऐसे में जिला चिकित्सालय के डॉक्टर्स और सहायकों की मदद ली जा सकती है। उनकी सेवाएं मेडिकल कॉलेज में ली जा सकती है। IMA से बात कर प्राइवेट डॉक्टर्स की टीम की मदद लेने की भी बात की जानी चाहिए। मीडीया को देर रात को कोविड रिपोर्ट जारी की जाती है जो समझ से परे है। या तो जारी करने वाले अत्यंत व्यस्त है अन्यथा लापरवाह। यदि दोनों नहीं है तो इसे अव्यवस्थित कार्यप्रणाली कहा जा सकता है क्या? इसका निर्णय पाठक स्वयं करें। हो सकता है कि व्यवस्था “रामभरोसे” हो, लेकिन अपनी सुरक्षा तो हमारे अपने हाथ मे है। लॉकडाउन का पालन करें, साबुन से हाथ धोना, सेनेटाइजर का प्रयोग करना, अपने और अपनों को, बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को संक्रमण की संभावना से बचाने में जिम्मेदार बने। अन्यथा मुख्यमंत्री जी ने तो कहा ही है कि “#COVID19 को रोकने के लिये हम दिन रात काम कर रहे हैं। कुछ लोग अभी भी बिना मास्क के घूम रहे हैं। हमें तय करना होगा कि हमें मास्क लगाना है या वेंटिलेटर!”


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