मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव निरस्त, कानूनी सलाह के बाद निर्वाचन आयोग का फैसला; कैंडिडेट्स की जमानत राशि वापस होगी…

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News By – नीरज बरमेचा

मध्यप्रदेश में अभी पंचायत चुनाव नहीं होंगे। राज्य निर्वाचन आयोग ने मंगलवार को कानूनी सलाह लेने के बाद चुनाव को निरस्त करने का फैसला लिया है। सचिव राज्य निर्वाचन आयोग बीएस जामोद ने कहा, कानूनी राय के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त ने पंचायत चुनाव की पूरी प्रक्रिया को ही निरस्त कर दिया है।


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आयोग ने कहा है कि जिन कैंडिडेट ने नामांकन के साथ जमानत राशि जमा की है, उन्हें यह राशि वापस की जाएगी। इस फैसले के लिए आयोजित बैठक में जामोद के अलावा राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह, प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास उमाकांत उमराव सहित अन्य अधिकारी मौजूद रहे।

बता दें कि आयोग में सोमवार को तीन बार बैठकें हुई थीं। इस दौरान आयोग के अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ का लीगल ओपिनियन अफसरों को मिला था, लेकिन दो अन्य वकीलों की कानूनी सलाह नहीं मिल पाई थी। इसकी वजह से मंगलवार तक के लिए फैसला टाल दिया गया था।

आयोग ने पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज संशोधन अध्यादेश-2021 के आधार पर 4 दिसंबर को पंचायत चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया था। इसमें वर्ष 2019 में पंचायतों के परिसीमन को निरस्त करके पुराने आरक्षण के आधार पर चुनाव कराए जा रहे थे, जिसे विभिन्न् याचिकाकर्ताओं द्वारा न्यायालयों में चुनौती दी गई थी। इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित पदों के चुनाव पर रोक लगाते हुए शेष प्रक्रिया को जारी रखने के आदेश दिए थे।

आयोग ने ली सुप्रीम कोर्ट के लीगल एक्सपर्ट से सलाह
आयोग ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर एडवोकेट से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पंचायत चुनाव पर ओपिनियन लिया। आयोग को फैसला लेने में इतना वक्त इसलिए लग गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को ओबीसी के लिए रिजर्व सीटों को सामान्य घोषित कर चुनाव कराने के आदेश दिया था। इस बीच सरकार के पंचायत राज संशोधन अध्यादेश वापस लेकर संकेत दे दिया था कि अब पंचायत चुनाव होना संभव नहीं है।

जब आधार ही खत्म हो गया तो चुनाव कैसे?
विधि विशेषज्ञों ने अभिमत दिया कि जिस अध्यादेश के आधार पर चुनाव प्रक्रिया संचालित की जा रही थी, जब वो ही समाप्त हो गया तो फिर चुनाव कराने का कोई औचित्य ही नहीं बचा था। दरअसल, अध्यादेश वापस लेने से वह परिसीमन पुन: लागू हो गया, जिसे निरस्त किया गया था। 1200 से ज्यादा पंचायतें फिर अस्तित्व में आ गईं। ऐसी स्थिति में चुनाव कराया जाना संभव ही नहीं था। आयोग ने मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 42 में दी गई शक्ति और मध्य प्रदेश पंचायत निर्वाचन नियम 1995 के नियम 18 के अंतर्गत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए चुनाव कार्यक्रम और इससे संबंधित सभी कार्यवाहियों को निरस्त कर दिया।

अब क्या होगा?
आयाेग ने आदेश में कहा है कि त्रिस्तरीय पंचायतों का कार्यकाल मार्च, 2020 में समाप्त हो चुका है और चुनाव की प्रक्रिया में काफी विलंब हो चुका है। आगामी चुनाव प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17 दिसंबर 2021 को पारित आदेश का पालन करते हुए जल्द प्रारंभ की जाएगी।

केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में बनी पक्षकार
पंचायत चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण के मामले में अब केंद्र सरकार ने दखल दे दिया है। केंद्र सरकार ने पक्षकार बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को याचिका दायर कर दी थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 3 जनवरी को सुनवाई होगी।

राज्य निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित (पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य) पदों को छोड़कर चुनाव करा रहा था। चूंकि जिस अध्यादेश के आधार पर चुनाव कार्यक्रम घोषित हुआ था, सरकार ने उसे ही वापस ले लिया है, इसलिए चुनाव प्रक्रिया को निरस्त करने का फैसला लिया गया।

मुख्यमंत्री ने सॉलिसिटर जनरल से की चर्चा
पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को बहाल कराने के लिए शिवराज सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा चुकी है। इस पर तीन जनवरी को सुनवाई प्रस्तावित है। इसको लेकर मुख्यमंत्री ने रविवार को दिल्ली में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कानून विशेषज्ञों के साथ बैठक की थी।

सुप्रीम काेर्ट में प्रस्तुत करने होंगे आंकड़े
आरक्षण की तय लिमिट 50% से ज्यादा आरक्षण के लिए सरकार को कोर्ट के समक्ष आंकड़े प्रस्तुत करने होंगे। इसके मद्देनजर सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग विभाग के माध्यम से ओबीसी मतदाताओं की गिनती कराने का काम प्रारंभ किया है। सभी कलेक्टरों को निर्देश दिए गए हैं कि 7 जनवरी तक यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाए। पंचायतवार और वार्डवार जानकारी शासन को भेजी जाए।


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