नाबालिग गैंगरेप प्रकरण में रतलाम पुलिस और प्रशासन पर दबाव है या वो असमंजस में है? जानिए क्या है मामला…

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News By – विवेक चौधरी और नीरज बरमेचा

पुलिस और प्रशासन के रवैए पर सवालिया निशान?

(www.newsindia365.com) रतलाम में हुए नाबालिग गैंगरेप की घटना ने पूरे शहर को आंदोलित करके रख दिया है। पिछले दो दिन से सोशल मीडिया तथा चौराहे पर इसी की चर्चा है। कोई आक्रोशित है तो आशंकित। कोई अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित है तो कोई भयभीत। स्कूल से संबंधित पालक संघ अपने स्तर पर संगठित हो रहे है तो सोशल मीडिया पर स्कूल जाने वाले बच्चों की माताएं सुरक्षा संबंधी चर्चा में सक्रिय है। लगभग सभी लोग इस मुद्दे पर अपने अपने हिसाब से सलाह, सुझाव और संवेदनाएं व्यक्त कर रहे है।

लेकिन यदि पूरे घटनाक्रम की बात करें तो पुलिस के रवैए पर सवालिया निशान लगाया जा सकता है। नाबालिग आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से थे और भाजपा एवं हिन्दू संगठन विरोध में स्वर बुलंद कर रहा था। मामले के प्रकाश में आते ही इस बात की चर्चा होने लगी थी कि मामले को निपटाने के लिए आरोपियों के पक्ष में एक कांग्रेस नेत्री सक्रिय है। पीड़िता के परिवार को मामले को निपटाने और आरोपियों को बचाने की कोशिशों की खबर मिलने लगी। घटनाक्रम की चर्चा में आया होटल भी कांग्रेसी नेता का था। और उनपर एक कद्दावर कांग्रेसी नेता का वरदहस्त है। यद्दपि उनका सीधा कोई संबंध नज़र नहीं आया लेकिन होटल उनकी संपत्ति है। इस बात के आरोप लगने लगे कि कांग्रेस की सरकार होने की वजह से पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाया जा रहा है। बुधवार को प्रदर्शनकारियों ने भी निष्पक्ष जांच पर संदेह व्यक्त किया था।

बुधवार को कन्या महाविद्यालय के बाहर जब सैकड़ों की संख्या में छात्र एवं छात्राएं विरोध प्रदर्शन कर रही थी, तब पुलिस कप्तान उन्हीं के बीच से गुजरे लेकिन मिलने के लिए रुके नहीं। शांति समिति की बैठक पुलिस थाने पर बने पुराने कंट्रोल रूम पर चल रही थी जिसमें कलेक्टर रुचिका चौहान भी उपस्थित थी। जब मामला इतना संवेदनशील था तो उसके बावजूद भी आला अधिकारियों की ओर से आगे बढ़कर प्रदर्शनकारियों से मिलने की, उनकी बात सुनने की कोई कोशिश नहीं की गई। पुलिस बल तैनात कर दिया गया एवं प्रदर्शन समाप्त करने के लिए समझाइश दी जाती रही। यदि आला अधिकारी आगे बढ़कर आकर प्रदर्शनकारियों से मिल लेते तो इतना आक्रोश भी नहीं फैलता। जिलाधीश स्वयं महिला है उनकी सक्रियता अपना महत्व रखती थी। जब पुलिस कप्तान बरसती बारिश में आकर मिले तो धरना समाप्त हो गया। इसके बाद जब हिंदू संगठनों ने एकजुट होकर गुरुवार की सुबह विरोध प्रदर्शन का पैदल मार्च निकालकर विरोध प्रदर्शन करने का तय किया तब भी पुलिस एवं प्रशासन द्वारा इनके साथ बैठकर बात करने की कोई कोशिश नहीं की गई।

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रात में ही प्रदर्शनकारियों को पहुँचाये कारण बताओ नोटिस सोशल मीडिया पर वायरल होने शुरू हो गए। जबकि इसको एक दो दिन के लिए टाला जा सकता था। गुरुवार की सुबह यह स्पष्ट नजर आया कि पुलिस को तनिक भी इस बात का अंदेशा नहीं था कि सड़कों पर हजारों हजार की संख्या में लोग उतर आएंगे। कॉन्वेंट स्कूल के सामने प्रदर्शन के समय पुलिस जितनी सक्रिय नहीं दिखी, जितनी होटल आशीर्वाद को बचाने में नजर आई। पैदल मार्च के भीड़ बढ़ने के साथ पुलिस की सक्रियता बढ़ी। ऐसा लग रहा था कि पुलिस इस बात का इंतजार कर रही थी कि कब पैदल मार्च स्कूल पहुंचे तथा ज्ञापन पुतला दहन इत्यादि का क्रम समाप्त हो और शांति मिले। लेकिन प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को मेहनत करवाने से नही छोड़ा। सुबह से लेकर प्रदर्शन निपटने तक पुलिस कभी असहाय नज़र आई तो कभी संयमी। और स्टेशन रोड तथा दोबत्ती क्षेत्र में सक्रिय भी नज़र आई।

पुलिस के रवैए पर सबसे बड़ा सवाल रतलाम के अभिभाषकों के आक्रोश ने खड़ा किया। बताया जा रहा है कि गैंगरेप के दो आरोपियों को गुरुवार की शाम द्वितीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश साबिर अहमद खान की न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था जहां पर न्यायालय द्वारा दोनों आरोपियों को ज्यूडिशियल रिमांड पर में जेल भेजे जाने का आदेश दिया गया। जैसे ही इस बात की जानकारी अभिभाषको को मिली वे उत्तेजित हो गए और न्यायालय में ही धरने पर बैठ गए। सूत्रों की माने तो पुलिस ने पुलिस रिमांड मांगा ही नहीं था। अभिभाषकों का कहना था कि 1000 रुपये की साईकल चोरी में 7 दिन की पुलिस रिमांड मांगने वाली पुलिस गैंगरेप प्रकरण में ज्यूडिशियल रिमांड मांग रही है। यह आश्चर्यजनक है। जिसके बाद अभिभाषकों का गुस्सा फूट पड़ा।

मूल प्रश्न यह है कि कांग्रेस सरकार होने से और आरोपियों के कांग्रेस से तार जुड़ने से क्या पुलिस और प्रशासन दबाव में है? क्यों पुलिस इस संवेदशील मामले गंभीरता, सक्रियता और पारदर्शिता नहीं बरत रही हैं? क्या प्रशासन पर सत्ता का दबाव है? क्या प्रशासन इस मामले को निपटाना चाहती है? आगे समय के साथ साथ स्थितियां और अधिक स्पष्ट होती चली जाएगी लेकिन वर्तमान की घटनाएं लोगों के मन मे आशंकायें जन्म दे रही है और कई प्रश्न उपजा रही है। जिसकी चिंता होना वाजिब है।