जानिए क्या वजह है कि रतलाम पदस्थ रही महिला आईएएस अधिकारी का विवाह चर्चा में है…

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News By – नीरज बरमेचा & विवेक चौधरी 

इन दिनों मध्यप्रदेश केडर की एक आईएएस अधिकारी समाचार की सुर्खियों में है। वजह उनका कोई सरकारी निर्णय या सरकारी फरमान नहीं है। वजह उनके निजी जीवन मे लिए गया एक निर्णय है। अपने सेवाकाल की प्रशिक्षण अवधि में रतलाम रही महिला आईएएस अधिकारी तपस्या परिहार द्वारा अपने विवाह के समय लिए गए एक निर्णय की वजह से तपस्या चर्चा और बहस का कारण बन गई है। यह उनका अपना निजी जीवन है और निर्णय भी उनका अपना, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए बहस या अनर्गल टिप्पणी नहीं। स्वाभाविक है कि जब परम्परा से हटकर कदम उठाया जाता है तो कुछ लोगों में सहज स्वीकार्यता नहीं बनती है। लेकिन भारतीय संस्कृति में सदा बदलाव की जगह रही है और कर्म से ज्यादा भावनाओं को महत्व दिया गया है।

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तपस्या परिहार 2018 बैच की आईएएस अधिकारी है। उन्होंने UPSC परीक्षा में 23 वीं रैंक प्राप्त की थी। उन्होंने पुणे से कानून की पढ़ाई भी की है। वे एक प्रतिभावान अधिकारी है। उन्होंने आईएफएस अधिकारी गर्वित गंगवार से विवाह किया है। उनका विवाह विगत दिनों मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के जोबा गांव में सम्पन्न हुआ। विवाह वैदिक विधि से ही सम्पन्न कराया गया सिर्फ कन्यादान की रस्म के लिए तपस्या परिहार ने पहले से ही मना कर दिया था। उनका कहना था कि “यहाँ दो परिवार एक हो रहे है ऐसे में दान की बात बीच मे नहीं आनी चाहिए। मैं अपने पिता की बेटी हूँ और सदा रहूँगी।”

तपस्या एक साधारण परिवार से है उनके पिता किसान है और तपस्या ने अपनी मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है। उनका परिवार भारतीयता से जुड़ा हुआ है। तपस्या ने अपने निर्णय पहले अपने परिवार फिर अपने पति और उनके परिवार को अवगत कराया और सभी को राजी किया। उनके पति गर्वित गंगवार ने भी उनके निर्णय से सहमति जताई। उनका कहना था कि सिर्फ महिलाओं को ही क्यों नियम पालन करना चाहिए? यदि कोई स्वेच्छा से पालन करता है तो ठीक है और कोई ना करें तब ठीक है। विवाह दो व्यक्तियों के बीच की साझेदारी है आपसी सम्बन्ध का विषय है।

क्या होती है कन्यादान की विधि

कुछ जगहों पर कन्यादान को गुप्तदान या गौत्रदान भी कहा जाता है। विवाह के समय कन्या के हाथ हल्दी से पीले करके कन्या के माता-पिता अपने हाथ में कन्या के हाथ, गुप्तदान का धन और पुष्प रखकर संकल्प बोलते हैं और उन हाथों को वर के हाथों में सौंप देते हैं। वह इन हाथों को गम्भीरता और जिम्मेदारी के साथ अपने हाथों को पकड़कर स्वीकार करता है, शिरोधार्य करता है। इस क्रिया के समय यह भावना की जाती है कि कन्या वर को सौंपते हुए उसके अभिभावक अपने समग्र अधिकार और जिम्मेदारी अब वर को सौंपते हैं। कन्या का कुल गोत्र अब पितृ परम्परा से नहीं, पति परम्परा के अनुसार होंगे। कन्या को यह भावनात्मक पुरुषार्थ करने तथा पति को उसे स्वीकार करने या निभाने की शक्ति विवाह यज्ञ में आह्वाहित देवशक्तियाँ प्रदान कर रही हैं, इस भावना के साथ कन्यादान का मंत्र संकल्प बोला जाता है। संकल्प पूरा होने पर कन्या के माता पिता अथवा  अभिभावक संकल्पकर्त्ता कन्या के हाथ वर के हाथ में सौंप देतें है।

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