नई नगर सरकार उम्मीदों के पैमाने पर नहीं उतर पाई खरी, नगर प्रशासन से तो उम्मीद करना ही बेकार….

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News By – Team News India 365 – रतलामी फीवर 

  • विजयादशमी पर रावण दहन कार्यक्रम को लेकर रतलाम निगम सोशल मीडिया पर हुआ ट्रोल
  • रतलाम नगर निगम एक बार फिर रावण बनाने में भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया
  • चार बार की कोशिश, नहीं जला पुतला तो आधा दर्जन लोगों ने मिलकर लगाई आग
  • देखने आये लोगो को निराशा हाथ लगी

रतलाम (06 अक्टूबर 22) इस वर्ष रतलाम के नेहरू स्टेडियम में दशहरे का रावण क्या जला, लगा कि शहरवासियों के नई सरकार को लेकर सारे अरमान ही जल गए। फ़िल्म पुष्पा के डायलॉग “मैं झुकेगा नहीं….” की भांति टेढ़ा खड़ा रावण जलने के बाद भी झुकने को तैयार नहीं दिखा। रावण दहन के दृश्य को देखने आई भारी संख्या में भीड़ जाते वक्त मायूस थी, उनके अरमान जल चुके थे और होंठों पर नगर सरकार के प्रति लापरवाही और भ्रष्टाचार की शिकायतें ही थी। कोरोना की कैद के बाद पहली बार आज़ादी की सांस के साथ नवरात्रि मेला का आनंद लेने आई नगर की जनता को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना ही मिली। अव्यवस्थाओं की भरमार और सही नियोजन का अभाव को कोई भी देख समझ सकता था। अगर पूरे शहर का आकलन करें तो लगेगा कि कुंवे में भांग पड़ी हुई थी। शहर और समाज के मुख्य त्योहार पर बिजली की समस्या ने अपनी सशक्त उपस्थिति का अहसास करवा कर अपना असर दिखाया।

नए महापौर यह नहीं कह सकते है कि वो नए है। वो पिछली नगर परिषद में थे। उन्हें नगर विधायक का वरदहस्त प्राप्त है। उनके पसंद के महापौर उम्मीदवार थे वे। पिछली परिषद भी भाजपा की थी और इस बार नई परिषद भी भाजपा की है। कुछ कर गुजरने की तमन्ना लेकर बने नगर निगम आयुक्त मेला शुरू होने के एन वक्त पहले हटा दिए गए। जिसे देखकर साफ लगता है कि तबादला करने वाले एसी में बैठकर निर्णय लेते है, मैदान का अनुभव सिर्फ कागजों पर ही है। अब नए आयुक्त तो बेचारे नए ही थे। उनसे क्या शिकायत करें। निगम के अधिकारी पहले भी निरकुंश थे और कोरोना काल के “अधिकारी राज” के बाद तो और अधिक होते नज़र आए। मुख्य मंच के सामने के मैदान के पहले भाग में कुर्सियाँ लगी थी और दूसरे भाग में घास का मैदान खाली पड़ा था, मानो मैदान रात्रिकालीन क्रिकेट मैच करवाने की प्रतीक्षा में हो। यदि उसमें खाने पीने की दुकानें लगा दी जाती तो मेला परिसर में रौनक बढ़ जाती और मंच के दर्शक भी। इसके लिए नगर सरकार के नए मुखिया की इच्छा भी नज़र आई थी लेकिन निगम प्रशासन के आगे तो सब बेबस ही है। वैसे एक दो जिम्मेदार पार्षद प्रयास तो कर रहे थे लेकिन निगम प्रशासन का “राजस्व प्रेम” जग जाहिर है। और इसी बीच नगर निगम के मंच से सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान हुए फूहड़ डांस ने भी नगर सरकार की किरकिरी करवाई। सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद महापौर को माफी मांगकर स्थिति संभालनी पड़ी।

शहर के खड्डे वाली सड़को, बंद और डायवर्सन वाली सड़को से झूझते हुए बेचारे नागरिक जैसे तैसे मेले में पहुँचते और मेले को अपेक्षानुरूप ना पाकर, मन मसोसकर वापस लौट जाते। मेले से तो बड़ा वाहन स्टैंड लग रहा था, जहाँ जाओ वहाँ नए बड़े हुए रेट पर वाहन पार्किंग वाले लड़के सेवा दे रहे थे। अब यह तो आरटीआई से ही पता चलेगा कि कितने और कहाँ वाहन स्टैंड अलॉट किये गए थे। नगर और आसपास के ग्रामीणों ने बड़ी संख्या में आकर गरबों एवं मेले का अच्छा प्रतिसाद दिया लेकिन निगम प्रशासन और नगर सरकार आशानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई। यातायात विभाग भी बिना तैयारी के नज़र आया, खासकर पुलिया पार के एक बड़े गरबे की वजह से हुए रूट डायवर्सन के एवज में नागरिक लंबे और ऊबड़खाबड़ सड़को की सैर करने को बाध्य हुए। रावण दहन की घटना तो ताबूत की कील की तरह चुभन वाली रही। बस ऊपरवाला ही जनता पर मेहरबान रहा जिसने 10 दिन पूरे होने के बाद ही अपना जलवा दिखाया। नवरात्रि की बारिश ने ज्यादा नहीं सताया लेकिन आज की बारिश ने सब धो डाला। देवी माँ के विसर्जन के समय यही प्रार्थना रही कि नगर की जनता की समस्याओं का भी जल्द से जल्द विसर्जन हो तथा नई नगर सरकार नई एवं उचित व्यवस्थाओं का सृजन करें।

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